मिनट्स ऑफ मीटिंग
दफ्तर में काम करते हुए या किसी मीटिंग में डिस्कशन करते हुए कई बार हमारे भीतर छुपा एक कलाकार, जो की सामान्यतः इन परिस्थितियों में हमारे सो जाने की प्रक्रिया में जाग ही जाया करता है, हमें तरह तरह के प्रलोभन देता है और लुभाता है कि हम कुछ ऐसा करें कि दिल की हर मुराद ....बस पूरी हो जाये हम जैसे कुछ लोग हैं जो इस बात को स्वीकार करके आगे बढते जाते हैं और स्वप्न देखने का दुस्साहस करते हैं और कुछ सह कलाकार ऐसे होते हैं जो उस प्रक्रिया में अपना कैरक्टर ढूँढने में व्यस्त रहते हैं | ठीक भी है, अगर ऐसे लोग ना हो तो हम जैसे लोगों के सपने कभी हकीकत नहीं बन पाएंगे | आखिर नींद भी एक धर्म है जिसे निभाना ही है... इन्ही सपनों की झालर और विचारों की झड़ी जो की मीटिंग या ग्रुप डिस्कशन में ही जन्म लेती है और वहीँ पर मोक्ष पा जाती है उन्हें आपके सामने रख रही हू | मैं आभारी हूँ अपने उन सभी कर्मठ कर्मशील और जुझारू सहयोगियों की, दफ्तर की, और उन सभी मीटिंग्स की जहाँ मेरे सपनो को प्लेटफोर्म मिला और वो देखे गए... बिना किसी डर के.. उन्ही मीटिंग्स के आज मैं मिनट्स लिख रही हूँ ... जहाँ तक इनक