कल रात हो गया ऐ दोस्तों एक हादसा, मैं समझता हूँ कोई १० बजे का वक्त था, एक खटमल मस्त हाथी की तरह झूमता, मेरे बिस्तर पर खुदा जाने कहाँ से आ गया, मैंने उस कमबख्त को चुटकी में रख मसल दिया, था बड़ा खुद्दार पानी तक ना मांग चल दिया, कब छुपाये से छुपा करता है धब्बा खून का, खटमलों में हो गया दम भर में चर्चा खून का, सुर्ख फौजें आ गई लेने को बदला खून का, चारपाई पर लाल बादल से छा गए, या खुदा इतने खटमल आखिर कहाँ से आ गए. एक ही सफे में हजारों मोटे पतले नौजवान, छोटे मोटे, हट्टे कटते, तंदुरुस्त नौजवान, खटमलों के कहून से लाल दरिया बह गया, हाथ मेरा खटमलों से और खून से सन गया, जाने वो फ़ौज के कर्नल थे या सिपाह सलार थे, भेडिये की नस्ल थे या शेर की औलाद थे, खत्म होने का तो वो नाम ही ना लेते, एक मारो तो हज़ारों रक्तबीज जन्म लेते, खटमलों के वार से हालत मेरी बदल गई, ऐसा लगता था की जैसे अर्थी मेरी निकल गई, खटमल जो थे जैसे नवाब बन गए, अपने वार से मुझको कबाब कर गए, फ़तेह की उम्मीद आखिर मैंने तोड़ दी, दो बजे मजबूर होकर चारपाई छोड़ दी......