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सरकारी टेबल

कितना भी विस्तृत हो इनका आकार होते हैं इनके दो ही प्रकार एक , जिनके पास अवलंब हैं चार पर रहते हमेशा निराधार कार्यों कि सूची का बोझ है अपार एक बण्डल इस पार , एक बण्डल निराकार, एक बण्डल जो लगाता है अफसरों के चक्कर हज़ार एक बण्डल जो हर चक्कर के साथ जन्म लेता है हर बार, इनकी महत्ता हर कार्यालय की है शान क्यूंकि जितना इनका हो बोझ ज्यादा समझो उतना ही हो रहा है भारत महान... कार्यालय की शान, उस पर हर अफसर की पहचान, हर दफ्तर की सील विराजमान, शायद इसीलिए कहते हैं.. होगा भारत महान... दो, जिनके पास अवलंब है हज़ार, कार्य है अतिशय फिर भी मारामार, जिस पर काम होता है द्रुतगति से, यदि सहयोग हो पीड़ित का मुद्रा की मति से, इन पर काम चलता है ऊपर और होता है नीचे से, और आकार लेता है मुद्रा के वजन और नीति से, कोई भी वैज्ञानिक सिद्धांत इन पर लागू नहीं होता, ये उठती जाती है ऊपर की ओर जैसे जैसे वजन नीचे का बढ़ता, सरकारी दफ्तर की जान, वजन वाले खुश बाकी हैरान परेशान, अफसर तो अफसर, बन जाता है यहाँ हर गधा पहलवान, महाशय, क्या आप अब भी नही कहेंगे कि होगा भा